न समुन्दर हूँ, ना मैं दरिया हूँ
न समुन्दर हूँ, ना मैं दरिया हूँ भीगी पलकों में ठहरा लमहा हूँ ख़ुश्बुओं के सहन में रहता हूँ एक ताज़ा हवा का झोंका हूँ मैं समझता हूँ रुख़ हवाओं का गरचे, सूखा हुआ-सा पत्ता हूँ जिनका परिचय है, ना पता कोई मैं उन्हें रोज़ पत्र लिखता हूँ मेरा परिचय है … Continue reading न समुन्दर हूँ, ना मैं दरिया हूँ
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